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आ॒दि॒त्यं गर्भं॒ पय॑सा॒ सम॑ङ्धि स॒हस्र॑स्य प्रति॒मां वि॒श्वरू॑पम्। परि॑वृङ्धि॒ हर॑सा॒ माभि म॑ꣳस्थाः श॒तायु॑षं कृणुहि ची॒यमा॑नः ॥४१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒दि॒त्यम्। गर्भ॑म्। पय॑सा। सम्। अ॒ङ्धि॒। स॒हस्र॑स्य। प्र॒ति॒मामिति॑ प्रति॒ऽमाम्। वि॒श्वरू॑प॒मिति॑ वि॒श्वऽरू॑पम्। परि॑। वृ॒ङ्धि॒। हर॑सा। मा। अ॒भि। म॒ꣳस्थाः॒। श॒तायु॑ष॒मिति॑ श॒तऽआ॑युषम्। कृ॒णु॒हि॒। ची॒यमा॑नः ॥४१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:41


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे विद्वान् स्त्री-पुरुष क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! आप जैसे बिजुली (पयसा) जल से (सहस्रस्य) असंख्य पदार्थों की (प्रतिमाम्) परिमाण करनेहारे सूर्य के समान निश्चय करनेहारी बुद्धि और (विश्वरूपम्) सब रूपविषय को दिखानेहारे (गर्भम्) स्तुति के योग्य (आदित्यम्) सूर्य्य को धारण करती है, वैसे अन्तःकरण को (समङ्धि) अच्छे प्रकार शोधिये। (हरसा) प्रज्वलित तेज से रोगों को (परि) सब ओर से (वृङ्धि) हटाइये और (चीयमानः) वृद्धि को प्राप्त हो के (शतायुषम्) सौ वर्ष की अवस्थावाले सन्तान को (कृणुहि) कीजिये और कभी (मा) मत (अभिमंस्थाः) अभिमान कीजिये ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - हे स्त्री-पुरुषो ! तुम लोग सुगन्धित पदार्थों के होम से सूर्य्य के प्रकाश, जल और वायु को शुद्ध कर और रोगरहित होकर सौ वर्ष जीनेवाले संतानों को उत्पन्न करो। जैसे विद्युत् अग्नि से बनाये हुए सूर्य्य से रूपवाले पदार्थों का दर्शन और परिमाण होता है, वैसे विद्यावाले सन्तान सुख दिखानेहारे होते हैं, इससे कभी अभिमानी होके विषयासक्ति से विद्या और आयु का विनाश मत किया करो ॥४१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ते किं कुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

(आदित्यम्) सूर्यम् (गर्भम्) स्तुतिविषयम् (पयसा) जलेनेव (सम्) (अङ्धि) शोधय (सहस्रस्य) असंख्यपदार्थसमूहस्य (प्रतिमाम्) प्रतीयन्ते सर्वे पदार्था यया ताम् (विश्वरूपम्) सर्वरूपवत् पदार्थदर्शकम् (परि) सर्वतः (वृङ्धि) वर्जय (हरसा) ज्वलितेन तेजसा। हर इति ज्वलतो नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१७) (मा) (अभि) (मंस्थाः) मन्येथाः (शतायुषम्) शतवर्षपरिमितजीवनम् (कृणुहि) (चीयमानः) वृध्यमानः। [अयं मन्त्रः शत०७.५.२.१७ व्याख्यातः] ॥४१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वंस्त्वं यथा विद्युत्पयसा सहस्रस्य प्रतिमां विश्वरूपं गर्भमादित्यं धरति, तथान्तःकरणं समङ्धि, हरसा रोगान् परिवृङ्धि, चीयमानः सन् शतायुषं तनयं कृणुहि, कदाचिन्माऽभिमंस्थाः ॥४१ ॥
भावार्थभाषाः - हे स्त्रीपुरुषाः ! यूयं सुगन्ध्यादिहोमेन सूर्यप्रकाशं जलं वायुञ्च शोधयित्वा अरोगा भूत्वा शतायुषस्तनयान् कुरुत। यथा विद्युन्निर्मितेन सूर्य्येण रूपवतां पदार्थानां दर्शनं परिमाणं च भवति, तथा विद्यावन्त्यपत्यानि भवन्ति, तस्मात् कदाचिदभिमानिनो भूत्वा प्रमादेन विद्याया आयुषश्च विनाशं मा कुरुत ॥४१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे स्त्री-पुरुषांनो ! तुम्ही सुगंधित पदार्थ होमात टाकून सूर्यप्रकाश, जल व वायू यांना शुद्ध करून निरोगी बना. शंभर वर्षे जगणारी संताने निर्माण करा. जसे विद्युताग्नीने बनलेल्या सूर्यामुळे पदार्थांचे दर्शन होते व परिमाण कळते तसे विद्यायुक्त संताने सुख देणारी असतात त्यासाठी विषयासक्ती व अभिमान यामुळे विद्या व आयुष्य यांचा नाश करू नका.